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और मैं बन गई मम्मा

                      और मैं बन गई मम्मा

गोधूलि बेला में, मैं ध्यान करने जा रही थी, कि तभी मोबाइल की घंटी बजी, बेटू ने कहा "मम्मा मेरा सीजीएल का रिजल्ट आ गया, मेरा रैंक भी अच्छा है|" सुनकर मैं खुशी से झूम उठी, मैंने कहा , "मुझे तो पता था ही कि मेरे बेटे का रिजल्ट जरूर आएगा| मुझे मेरे बच्चे की मेहनत और मेरे शिवबाबा पर पूरा विश्वास है|" फिर उसने "थोड़ी देर बाद  कॉल  करता हूं |"कहकर फोन रख दिया|

 मैंने फोन रख कर शिव बाबा को धन्यवाद किया, और बीते 3 वर्ष पहले की यादों में खो गई| कितना खुशी भरा गौरवपूर्ण क्षण था वो......  26 मार्च 2017 की वह शाम, जब दरवाजे की घंटी बजती है, और मैं दरवाजे की ओर खींची चली जाती हूं, दरवाजा खोला तो देखा सामने एक नवयुवक खड़ा है| शाम की धुंधली रौशनी में मैं उसे स्पष्ट देख नहीं पा रही थी| मैंने पूछा "किस से मिलना है?" तो उसने कहा "सर हैं ?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "यहां सभी सर हैं, आपको किन से मिलना है?" तो उसने मेरे पिताजी का नाम लेते हुए कहा, "मुझे निर्मल सर से मिलना है", मुझे लगा शायद पिताजी का कोई छात्र है| मैं झटक कर पिताजी की ओर गई, और उनसे कहा, "कि आपसे आपका कोई छात्र मिलने आए हैं|" पिताजी दरवाजे की तरफ बढ़े, मैं अपने काम में लग गई| फिर देखती हूं पिताजी उसे लेकर अंदर की ओर आ रहे हैं, और मुझे पुकारते हुए कह रहे हैं" देखो तो कौन आया है ? क्या तुम इसे नहीं जानती? युवक ने मेरे पैर छूकर मुझे प्रणाम किया, जब सीधा खरा हुआ तो उसे देखकर मैं अवाक रह गई, पिताजी कहने लगे "क्या तुम अभिषेक को नहीं जानती देखो तो कितना बड़ा हो गया है, और कितना सुंदर दिखता है| अभिषेक को देख मेरा हृदय ममता से भर गया उसका सुंदर सा भोला मासूम चेहरा उसकी बड़ी बड़ी सुंदर सी निश्चल आंखें जो उसके दिल का हर हाल बयां कर देती| आज भी बरसों पहले की तरह मुझे उसी श्रद्धा और प्यार से देख रहा था मैं अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी कि मेरा छोटा सा नन्हा सा बच्चा वर्षों बाद मेरे सामने खड़ा है मुझे सब कुछ सपने की तरह लग रहा था मैंने अपने ममता भरे हाथों से उसके गालों को थपथपाया,  वह भी बिना हिचके  मेरे गले लग गया और बोला "मैं आपसे ही मिलने आया हूं मम्मा, 6 मार्च को मेरा उपनयन संस्कार है आप आओगी ना मैं निमंत्रण कार्ड लेकर आया हूं|"

 उसने मम्मा कह कर मुझे जो सम्मान दिया उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती अभिषेक ने मुझे अपनी मम्मा बना लिया "और मैं बन गई मम्मा ",तब से आज तक हम दोनों एक खूबसूरत मां बेटे का रिश्ता जीते आ रहे हैं, मैं ऐसे होनहार और कर्तव्यनिष्ठ बेटे को पाकर धन्य हो गई अभिषेक को देखकर कोई भी माँ  यह चाहेगी कि उसका बच्चा, अभिषेक जैसा सुसंस्कारी हो, मुझ पर प्रभु की कितनी बड़ी कृपा है, जो उन्होंने खुद उसे मेरा बेटा बना कर भेज दिया|

 किसी ने सच ही कहा है कि हमारे द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्म और किसी को दिया गया प्रेम या नफरत लौटकर हमारे पास बना जरूर आता है|

 आज से 22 साल पहले सन् 1998 में 6 वर्ष की आयु में अभिषेक के माता-पिता उसे मेरे घर लेकर आए थे अभिषेक की माताजी मेरे पिताजी की छात्रा रह चुकी थी, मेरे पिताजी एक प्रतिष्ठित और विद्वान शिक्षकों में से गिने जाते थे इसी कारणवश अभिषेक की मां की हार्दिक इच्छा थी, कि अभिषेक उनके पास ही रह कर शिक्षा ग्रहण करे,  अभिषेक को घर में सभी बिक्कू  कह कर बुलाते हैं, मैं भी उसे बिक्कू कह कर, पुकारने लगी|बिक्कू  हमारे साथ ही रहने लगा पिताजी ने उसकी सारी जिम्मेदारी मुझे सौंप दी, मैं छोटे से नन्हे  से बिक्कू को पाकर बहुत खुश थी पर इस नन्ही सी आयु में अपनी मां से दूर रहने का दुख और उसका सहमा हुआ चेहरा देख मेरा हृदय द्रवित हो उठता ना जाने किस जन्म का रिश्ता था  मेरा उससे, जो उसे देख मैं अपनी  ममता को रोक नहीं पाती| मैं बिक्कू की  देखभाल, उसकी पढ़ाई और साथ-साथ अपने स्नातक की पढ़ाई भी पूरी कर रही थी पिताजी ने उसका एडमिशन पास के ही स्कूल में करवा दिया मैं उसे नहलाकर स्कूल के लिए तैयार करती उसे अपने हाथों से खाना खिलाती,जब वो,  स्कूल चला जाता तो, हमेशा उसकी फिक्र लगी रहती| 3:00 बजते ही मेरा मन आशंकित हो उठता,  पता नहीं मेरा बच्चा स्कूल से घर आने का रास्ता भूल तो नहीं जाएगा, बार-बार रास्ते को निहार कर आती  जब वह आता दिखाई देता तो मैं खुश हो जाती कर उसका थका हुआ पसीने से लाल हुआ चेहरा देख मेरा ह्रदय द्रवित हो उठता, मैं उसका भारी बैग जल्दी से लेकर उसे हाथ पैर धोने को कहती उसे जो भी नाश्ता दिया जाता, वह  चुपचाप खा लेता फिर घंटों मेरे साथ लुकाछिपी, आंख मिचौली का खेल खेलता |हम दोनों को एक दूसरे  का  साथ बहुत अच्छा लगता |कुछ ही दिनों में वह मुझसे बहुत हिलमिल गया, शाम को मेरे साथ पढ़ने बैठता, मैं खुद भी पढ़ती और उसे भी पढ़ाती, पढ़ते-पढ़ते जब उसे नींद आती तो वह मेरी गोद में सो जाता, चांदनी रात में मैं छत पर उसे अपनी गोद में ले कर बैठती और उसे गाना सुनाने को कहती तो वह झूम झूम कर गाना गाता उसे गाना गाता  देख मैं उसे बहुत प्यार करती |बिक्कू के  माता-पिता ने उसे इतने अच्छे संस्कार दिए थे, जिस कारण वह बच्चा हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया| जब मैं उसे कुछ समझाती, तो वह  एकाग्र होकर सुनता अपने सारे गृह  कार्य को पूरा करके ही उठता| वह जितना शांत था उतना ही मासूम, जितना मेहनती था उतना ही मेधावी और सुसंस्कारी उसके गुण सभी को प्रभावित करते मेरे पिताजी भी उसे बहुत प्यार करते थे| गणित की प्रतियोगिता हो या सुलेख कि, वह हमेशा अव्वल  आता |जब भी उसे कोई इनाम मिलता वह सबसे पहले दौड़ कर मुझे दिखाता |ऐसे ही कितने प्यारे पल है, उससे जुड़े, जिन्हें, मैं कभी भूल नहीं  सकती अब 2 साल से अधिक हो गए थे, हमारे साथ रहे, उसका आत्मविश्वास भी पहले से बढ़ गया और वह डरा सहमा भी नहीं रहता था |थोड़ा बड़ा भी हो गया| पिताजी के छात्रावास में, और भी बच्चे आ गए वह सभी बच्चों के साथ खेलता और पढता |मैं उन दिनों अपने स्नातक की परीक्षा की तैयारी में व्यस्त रहने लगी को कम समय दे पाती पर जब भी समय मिलता है उसके पास रहती,  वह छात्रावास के किसी भी बच्चे को मेरे पास आने नहीं देता| मैं भी हमेशा उसे सब बच्चों से ज्यादा प्यार करती |इसी तरह 3 वर्ष बीत गए इन तीन वर्षों में मैंने बिक्कू को अपने बच्चे की तरह प्यार किया, और उससे अपने बच्चे की तरह ही प्यार पाया भी|

 स्कूल में गर्मी की छुट्टियां हो गई प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टी में बिक्कू अपने घर चला गया| मैं उसके लौटने का इंतजार करने लगी, एक दिन कॉलेज से घर आने पर, मुझे पता चला कि अभिषेक के पापा आकर उसका सारा सामान लेकर चले गए| अब आगे की पढ़ाई के लिए उसे किसी अच्छे हॉस्टल में डालेंगे |यह सुनकर मेरा कलेजा धड़क गया, जैसी मेरी गोद ही सुनी हो गई हो, मैं हमेशा उसे  याद करती रहती| उसके मामा जी कभी-कभी मेरे घर आया करते तो उनसे उसका समाचार पूछती, तो पता चला कि वह किसी अच्छे हॉस्टल में पढ़  रहा है| तीन चार वर्ष बाद एक रिश्तेदार की शादी में, मुझे पता चला कि वह भी वहां आया है |मैं उसे ढूंढी पर वह मुझे नहीं मिला |मैं मन ही मन सोचने लगी जब वह यहां था  तो काफी छोटा था, अब तो शायद मैं उसे याद भी नहीं होंगी, और शायद अब दोबारा कभी उस से मेरी मुलाकात भी नहीं होगी|

 बाद में मुझे पता चला कि छात्रावास में बच्चों की संख्या बढ़ जाने से बच्चों को खाने-पीने में असुविधा हो रही थी |इसी कारण वश बिक्कू  यहां से चला गया| मन ही मन में उसे याद करती, सोचती, वह कितना बड़ा हुआ होगा ? कैसा दिखता होगा पता नहीं कभी मुझसे मिलने आएगा या नही?

 आज 20 साल बाद वह  मेरे पास बैठा है |मैं इस पल को कैसे बयां करूं? मेरा दिल भर आया, मैं विश्वास नहीं कर पा रही वह मेरे पास बैठा है, मेरा बच्चा मेरे पास आ गया, और अब कभी मुझसे दूर नहीं जाएगा|

 आज मेरा बेटा अपने करियर के ऊँचे  मुकाम तक पहुंचने ही वाला है| पिताजी हमेशा कहते हैं, वह बहुत आगे जाएगा और आज हमारा सपना सच होने वाला है| उसने एक्साइज इंस्पेक्टर की परीक्षा अच्छे अंको से पास कर ली है |उसका रैंक भी बहुत अच्छा है| बिक्कू के प्यार ने मुझे यह सिखा दिया, कि मां सिर्फ जन्म देने से ही नहीं बना जाता उसके प्यार ने मुझे मम्मा बना दिया|

 "और मैं बन गई मम्मा "उसके प्यार और वात्सल्य के प्रवाह में बहती चली गई "और मैं बन गई मम्मा|"

 

सीख  - सदा सभी को प्यार और सम्मान देना चाहिए, ऐसा करने से हमें स्वतः  ही प्यार और सम्मान मिलने लगता है|


       ब्रह्माकुमारी मधुमिता'सृष्टि'

                   विद्यालय -मध्य विद्यालय सिमलिया

प्रखंड - बायसी 

    जिला - पूर्णिया (बिहार)