जियो जिंदगी जी भर के
दूर गगन में अटखेलियां करती पतंगों को देखकर भगति रहती मैं उसके पीछे, ऐसे ही तो आती है मामा और मासी की चिट्ठियां |एक कागज के टुकड़े पर लिखा अपनी सहेली को खत और कर दिया उसे हवाओं के हवाले |
मासूम कल्पनाओं में खोयी रहती, अबतक तो सड़कों और नदियों को पारकर चिट्ठी पहुंच गयी होगी तरन्नुम के पास |
उमंग, उत्साह और सन्तुष्टता सबकुछ समाया था बचपन के उन दिनों में |
पिताजी ने बताया "वो देखो क्षितिज जहाँ जमीं और आसमां मिल गए हैं "|
आँखें खुशी से चमक उठी अब तो जाना है मुझे एक बड़ा सा डंडा लेकर उस क्षितिज के पास और तोड़ लाना है एक छोटा सा आसमान |
स्कूल जाते समय मेरी परछाई कितनी छोटी लगती और स्कूल से लौटते समय "अरे मेरी परछाई तो देखो दूर खेतों में, नदियों में लहरा रही है | मन मेरा खुशी से झूम उठता |
शरद ऋतू की मनमोहक सुबह पत्तों पर झिलमिलाती ओस की बूंदें | जिसे देखकर सोचती काश इन बूंदों को मैं जमा कर पाती अपनी हथेली में| हाथों से स्पर्श करते ही तन- मन नई ताजगी से भरपूर हो जाता|
जिया है मैंने हर पल ज़िंदगी का जी भर के, देखा करती थी अक्सर बादलों को दूर गगन में अठखेलियां करती, बादल भी खेला करते मेरे संग रूप बदलकर, पल-पल बदलती बादलों की आकृति, रंगमंच था उनका नीला आकाश| उन बादलों और हवाओं के साथ झूमती मैं, आज भी गुदगुदा जाती बचपन की ये मस्तियां|
कुछ भी तो नहीं बदला आज भी मैं वही हूं|
परिस्थितियां आई जरूर, पर परिस्थितियों से मैंने जीना सीखा, लड़ना सिखा|
सुंदर और खुशबूदार गुलदस्ते सा मेरी ये जीवन यात्रा आज भी मेरे मेरे मन मस्तिष्क को तरो - ताजा कर जाती है|
बहुत खुशी होती है मुझे यह सोच कर कि मैंने अपनी जीवन के हर पल को जिया है|
मेरी जीवन यात्रा इस वाक्य को सार्थक सार्थक करती है "जियो जिंदगी जी भर के"
ब्रह्माकुमारी मधुमिता' सृष्टि'
मध्य विद्यालय सिमालिया
बायसी पूर्णियाँ बिहार
