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कलम, आज उनकी जय बोल

 कलम, आज उनकी जय बोल



जला अस्थियाँ बारी-बारी


छिटकाई जिनने चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल ।
कलम, आज उनकी जय बोल ।

जो अगणित लघु दीप हमारे


तूफानों में एक किनारे,


जल-जलाकर बुझ गए, किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल ।


कलम, आज उनकी जय बोल ।

पीकर जिनकी लाल शिखाएँ


उगल रहीं लू लपट दिशाएं,


जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल ।


कलम, आज उनकी जय बोल ।

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा ?

साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल ।


कलम, आज उनकी जय बोल ।

                        
                                   रामधारी सिंह दिनकर