सपने में गांधी जी
कल रात सपने में
गांधी जी मेरे पास पधारे,
बड़े प्यार से मुझे पुचकारे।
मैंनें भी उनका खूब आवभगत किया
एक लोटा शीतल जल के साथ
प्लेट में एक ढेला गुड़ दिया।
महज औपचारिकता वश
मैंनें उन्हें भोजन के लिए पूछ लिया
बिना किसी संकोच उन्होंने
अपने पिचके पेट की ओर
इशारा भर किया,
अब रात भला भोजन कहां मिलता
मैंनें उन्हें माँ के भेजे
चूरा चने और नमक मिर्च
लाकर दे दिया।
शायद स्वर्ग में भोजन की
हड़ताल रही होगी,
इसीलिए भूख उन्हें मेरे पास
आने के लिए विवश की होगी।
खैर! अब उनके चेहरे पर
भरे पेट की सूकून दिखी,
मुझे भी ऊपर से ही सही
मगर आंतरिक खुशी मिली।
अब गांधी जी ने मुझसे कहा
बच्चा! जबसे यहाँ से गया हूँ
एक पल को सूकून से नहीं रहा हूँ।
मैं थोड़ा हड़बड़ाया
मन के डर को दूर भगाया
और पूछ ही लिया
मगर ऐसा क्यों बापू?
आपके तो जाने के बाद भी
खूब जलवे हैं,
आपके नाम की रोज रोज
होती जय जयकार है,
यह अलग बात है
कि लोग आपको याद करते हैं
आपके विचारों, राहों की
खूब दुहाई देते हैं,
बस! अपना उल्लू सीधा करते हैं
और फिर भूल जातें हैं।
दो अक्टूबर को भी आपको
महज औपचारिकतावश ही
जबरन याद करते हैं,
वरना बाकी दिन तो ठेंगा ही दिखाते हैं।
बेचारे गाँधी जी रुँआसे हो गये
बड़ी मुश्किल से ही बोल सके
बच्चा बस यही तो मेरी चिंता है
शायद मेरी भूलों की ये सजा है
मेरे मोहवश लिए फैसलों के कारण ही
आज मेरी ये दुर्दशा है,
जिनकी खातिर मैंनें वो सब किया
उनकी ही औलादों ने मुझे
शतरंज की बिसात समझ लिया है।
देश को आजाद कराया
राष्ट्रपिता कहलाया,
पर शायद पिता का धर्म
अच्छे से नहीं निभा पाया,
देश के दो टुकड़े क्या हुए
मेरे शरीर के दो टुकड़े हो गए
मेरे सपने मेरी ही मूर्खतावश
जैसे चूर चूर हो गए।
अब तो मैं जो देख रहा हूँ
वो सब देखना भी तो
भीष्म पितामह की तरह
आखिर मेरी मजबूरी है,
ये कैसी किस्मत है मेरी
जो मेरा नाम लेकर रोज रोज
क्या कुछ नहीं हो रहा है,
मेरी मौत के बाद मेरी आत्मा को
भटकाने का जैसे रोज
नया नया इंतजाम हो रहा है,
आरोप प्रत्यारोप को देख
अब मुझे लगने लगा है,
गाँधी अब गाँधी नहीं रहा
सिर्फ़ फुटबॉल हो गया है।
मैंनें बापू का बड़े प्यार से
अपने अंदाज में गुदगुदाया
परेशान न हों बापू
आखिर फुटबॉल भी तो
बच्चों के खेलने के काम ही आ रहा है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
