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माँ कुष्मांडा- कविता- सुधीर श्रीवास्तव

 माँ कुष्मांडा



जगत जननी जगदम्बा का 

चतुर्थ रूप गर्भ स्वरूप 

माँ कुष्मांडा कहलाती हैं,

सृष्टि उत्पत्तिकर्ता

ब्रह्मांड रचयिता माँ कुष्मांडा

आदिशक्ति भी कहलाती हैं।


देवों ऋषियों के रक्षा हित

माँ कुष्मांडा ने अवतार लिया,

असुरों के संहार की खातिर

माँ ने खुद में ठान लिया।


अष्ट भुजाओं वाली मैय्या

अष्टभुजी कहलाती है,

धनुष-बाण,गदा, चक्र

कमल पुष्प से सोहाती हैं।


अमृत कलश कमंडल लेकर

मैय्या सबको हर्षाती है,

शेर सवारी मैय्या की

सबके मन को भाती है।


धूप दीप नैवेद्य आरती से 

जो माँ का पूजन करता,

उस पर माँ प्रसन्न होकर

संतापों से मुक्ति दिलाती,

ध्यान धरो माँ के चरणों में

माँ सोये सौभाग्य जगाती।

  

                              सुधीर श्रीवास्तव

                          गोण्डा(उ.प्र.)

                               8115285921