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यादें

 यादें



शहर से निकल आये हो,

क्या मेरी यादों से निकल पाये हो,

भाषा आज भी मेरी बोलते,

क्या अपनी दिल की धड़कन पर काबू पाये हो।


मन घबरा जाता फ़िर मुस्कुरा जाता,

क्या बीमारी दे गये?

ये प्यार की आहट है क्या?

या पागलपन का नशा देगये।


खाली कमरे में तेरी यादें छा गई,

दोस्ती की ख़ुशी अब खिलखिलाति नहीं,

मेरा घर अब जगमगाता नहीं,

क्या जादू किया मेरे दिल पर

दर्द अब लफ़्ज़ों से कहती नहीं।


सब अपने है यहाँ

तुम्हारे सामने सब पराये होगये?

कोनसा नशा किया है तुमनें 

क़लम कागज पर चलती नहीं है

घड़ी बढ़ती नहीं है

सुबह होती नहीं है। 


                         प्रतिभा जैन

                                   टीकमगढ़ मध्यप्रदेश