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क़रीब

 क़रीब



वो क़रीब हमारे है,

दिल से हम तुम्हारे है।


मजबूरी इस क़दर है,

एक गिलास न उठा पाये।


बेटी की याद में तड़पता जाऊँ,

बहु को आंख भरते देखूँ।

लफ्ज़ों में हम अब क्या कहे? 

बुढापे में होश आया

एक- एक बात आँखों पर छाई है।


एहसास हुआ दिल को अपनी गलती का,

सारे नियम तोड़

बहु करीब थी

बेटी की जगह बहु लिये थी।


आज याद आया वो दिन

बहु बेटी से कम न थी।

हम ससुर नहीं आज पिता थे।


                              प्रतिभा जैन

                                       टीकमगढ़  मध्यप्रदेश