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एक दीया (जगदीश कौर)

 एक दीया


एक दीया जलाओ विश्वास का ।

सबके हौसले और आस का ।

हो या जात धर्म से बहुत दूर ।

हो इसमें इंसानियत का नूर ।

रूहानियत और मूल्यों से भरपूर।

उसपे धड़के जमीर जरूर ।

ऐसा दीप इस बार जलाना होगा।

अज्ञानता का अंधेरा भगाना होगा


प्रकृति न प्रदूषण की मार सहे ।

प्रदूषण रहित दीपावली चले ।

खुशियों से न वंचित रहे कोई ।

ईश्वर इस बार सुनों अरजोई।

सबके धरों में उजाला हो ।

दुःखों का न जाला हो ।

कोई न बिलखता हुआ रहे।

सबका घर खुशियों से सजे ।


न जात धर्म का शोर हो ।

न दुख की घटा घनघोर हो।

इस बार घर में दीप जलाएं।

कुम्हारों के घर भी खुशियां आएं।

रोशन देने जो तुम्हारे घर को।

सोएं न होगे कितने रातों को ।

उनके होठों पर मुसकान दे।

ऐसा इस बार पैगाम दे ।


एक चक्कर अनाथालय का लगाएं ।

वहां भी जाकर मिठाइयां बाँट आएं।

इस बार सच्चे दिल से इबादत करें।

इस बार की दीपावली उनके नाम करें।

ईश्वर को न जरूरत मिठाई और दीये की ।

उसकी खुशी हर इंसान की है खुशी ।

गरीब के घर में होगी अगर दीपावली ।

ईश्वर के होठों में आएंगी फिर लाली ।

आओं हम सब मिलके एक प्रतिज्ञा ले ।

एक एक घर की जिम्मेदारी हाथों में ले।

इस बार मनाएं हम कुछ इस तरह दीपावली।

कोई न रहे दुःखी, सबके होठों में रहे लाली।।




जगदीश कौर

प्रयागराज,इलाहाबाद,यूपी




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