आओ बाहर देखें
आओ चलें बाहर देखें
ये कैसा ठिठौरा है
मटमैली धरा पर लेटे
बिन वसन का डेरा है I
भूखे पेट सा पहरा है
अनदेखा झमेला है
रुखी सूखी लगतीं आँखें
बूँदों का सबेरा है I
ठहरो,मुझे लगते भूखे
पेट पीटते हैं बच्चे
न उनका घर,न दरवार है
खामोश मुख लगते कच्चे I
आँखें निर्मोही सी लगतीं
ताकती नित नया आज
शायद फैंक,उन पर कोई
टुकड़े रोटी के आज I
क्षुधा मिटा सकें वे पल में
दुआ दे विशाल नभ सी
टटोल,टटोल बीच मन को
भाप यादें जीवन सी I
अशोक बाबू माहौर