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आओ बाहर देखें (कविता )

आओ बाहर देखें 

आओ चलें बाहर देखें 
         ये कैसा ठिठौरा है 
मटमैली धरा पर लेटे
         बिन वसन का डेरा है I 
भूखे पेट सा पहरा है 
         अनदेखा झमेला है 
रुखी सूखी लगतीं आँखें 
          बूँदों का सबेरा है I 
ठहरो,मुझे लगते भूखे 
          पेट पीटते हैं बच्चे 
न उनका घर,न दरवार है 
          खामोश मुख लगते कच्चे I 
आँखें निर्मोही सी लगतीं 
          ताकती नित नया आज 
शायद फैंक,उन पर कोई 
          टुकड़े रोटी के आज I 
क्षुधा मिटा सकें वे पल में 
          दुआ दे विशाल नभ सी 
टटोल,टटोल बीच  मन को 
           भाप यादें जीवन सी I 
     
                      अशोक बाबू माहौर