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उनकी मर्जी है सनम ("कवि" सुदामा दुबे)

 उनकी मर्जी   है  सनम  रोज  ही  सताया   करें 

अपना  हक  यूँ  ही सनम रोज  ही जताया करें !!


              हमको उनसे कोई  शिकवा ना  शिकायत होगी

              हुस्न  के  तीर    सनम  रोज  ही  चलाया   करे !!


हम भी  छेड़ेगें गजल  उनकी खुशी की खातिर 

वो भी  महफिल  में सनम रोज  ही बुलाया करे !!


             तोड़   देगें    रिश्तें   आज     ही   मयखाने  से 

             अपने  होठों  से  सनम रोज  ही  पिलाया  करें !!


हम  को   दीवाना    बनाती  है  निगाहें  उनकी

पेंच  नेनौ    के   सनम  रोज  ही  लड़ाया  करे !!


             साथ   छोड़ेगें   नही    है  यह   इरादा    अपना  

             कसमें  वादे  वो  सनम  रोज ही   दिलाया  करें !!


हम भी  फूलों की  तरह  खूब महकते है सनम 

अपनी  जुल्फों  में  सनम रोज ही सजाया  करें !!

                                  

                                        "कवि" सुदामा दुबे