Header Ads Widget

नवीनतम रचनाएँ

6/recent/ticker-posts

फूल मुरझाया ड़ाली पर

फूल

मुरझाया हुआ

ड़ाली पर

ड़ाली

नादान सी

समेटे हाथ

झुकी

भिखारी सी

जैसे माँगती भीख

हवा से

आहिस्ता आहिस्ता |


           अशोक बाबू माहौर