फूल
मुरझाया हुआ
ड़ाली पर
ड़ाली
नादान सी
समेटे हाथ
झुकी
भिखारी सी
जैसे माँगती भीख
हवा से
आहिस्ता आहिस्ता |
अशोक बाबू माहौर
फूल
मुरझाया हुआ
ड़ाली पर
ड़ाली
नादान सी
समेटे हाथ
झुकी
भिखारी सी
जैसे माँगती भीख
हवा से
आहिस्ता आहिस्ता |
अशोक बाबू माहौर
साहित्यिक समाचार
काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच पंजीकृत की 179 वीं गोष्ठी शनिवार को मेरे कार्यालय श्री…
Copyright (c) 2025SAAHITYA DHARM BLOGGING All Right Reseved