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मंजर

मंजर


दोस्तों ये कैसा ?

शहर हो गया

प्राणवायु यहाँ पे 

जहर हो गयी। 


दोस्तों ये कैसी  ?

डगर हो गयी 

शूल से बिछी  

ये डगर हो गयी ।

 

दोस्तों ये कैसा ?

चमन हो गया

चेहरे से खुशी 

अब काफूर हो गयी । 


दोस्तों ये कैसा ?

नगर हाे गया

शकून जिन्दगी से 

रूठ कर चला गया। 


दोस्तों ये कैसा ?

गगन हो गया

तारों की रोशनी 

घटा में गुम हो गयी । 


दाेस्तों ये कैसा ?

समन आ गया

मौत से पहले ही 

कफन आ गया। 


दोस्तों ये कैसी ?

नजर हो गयी 

अश्लीलता देखने को

बेशर्म हो गयी । 


दोस्तों ये कैसा ?

सफर हो गया

यार भी बेईमानों का

हमसफर हो गया। 


दोस्तों ये कैसा ?

गजब हो गया

रक्षक ही भक्षक बन 

अवतरण हो गया। 


दोस्तों ये कैसा ?

समय आ गया

राजनीति में चेहरा 

बदनाम हो गया। 


दोस्तों ये कैसा ?

मंजर आ गया

मानवता की सोच ही 

जहर हाे गयी । 


दोस्तों ये सामने कौन आ गया ?

अपना ही अपनों का दुश्मन हो गया। 



                     उदय किशोर साह

               मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

               9546115088