गरीबों का मसीहा
रक्षक कहूँ या भक्षक तुमको
है इनकी पहचान नहीं
जिसे समझते हैं हम अपना
निकला अधर्म शैतान वही
लेबल लगा है सेवक का
पर चेहरा है शातिर
हाथ जोड़कर वोट माँगता
मतदाता को रिझाने खातिर
पॉच वर्ष दर्शन दुर्लभ है
वोट के मौसम में आते हैं आप
जीत कर शक्ल ना दिखाता कभी
पैर छुकर माँगते माफी कह माई बाप
राम नाम का चादर ओढ़कर
नकली सूरत दिखलाते हैं
असली सूरत छुपा है चादर में
जन सेवक कहलाते हैं
छ्ल बल के दौलत से लड़ते
वोट बैंक की राजनीति
जनता के बीच हितैशी बनकर
बनाते हैं खुद की तकदीर
विकास कार्य से नाता ना इनका
वंशवाद की दुकान है सजता
पीढ़ी दर पीढ़ी मसीहा बनकर
राजनीत कमाने की है जरिया
भोली जनता भोली सूरत
क्या समझे हम इनकी चाल
सरकारी स्कूल में पढ़ते सबके बच्चे
कैम्ब्रिज में पढ़ते इनके लाल
खादी धारण कर गाँधी वादी बनते
दिल इनकी है अति रंगीन
संसद सभा में उधम मचाते
जब ना चलते अच्छे दिन
अपराध से है गहरा नाता
अपराधी गण इनके मेहमान
मदिरा पीते रोमान्स करते
तितली संग थिरकते हर शाम
गरीबी हटाओ का नारा देकर
हटा ना सकी गरीबी सरकार
जन सेवक का चादर ओढ़कर
हो रहे हैं स्वयं मालामाल
महल पे महल इनके बनता
झोपड़ी हमारे नाम दिया
कल तक साईकल थी इनकी सवारी
आज घूमते हवाई मार्ग
माथे पे चन्दन की लंबी टीका
होठो पे कातिल मुस्कान
जनता को बेवकूफ बनाकर
सजा लेते हैं बेटे की दुकान
घोटाले पे घोटाला करते
सत्ता के गली की ये हैं शेर
भोली जनता की हक खाकर
बन गये हैं शूरमा वीर
ये कानून से भी ना डरते
सरकार पर है इनकी धाक
जनता कब समझेगी ये सब
कब होगी पापीयों का हिसाब I
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088