आ गले लग जा
आँखो की तड़प
सपनों का इन्तजार
दिल रोता है
तेरे लिये बार बार
पर तू निकला कैसा
भूलक्कड़ पिया
जो दूर रह कर
मेरी चिन्ता ना किया
इस सावन में
सूनी सूनी है
दिल की गलियाँ
बागों की उजड़ गईं
खिली सब कलियाँ
जो गुलशन
हम ने सजाये थे कभी
पतझड़ उनपर
छा गया है अभी
कभी सोचा होता
कैसी है मेरी कहानी?
दिन रात रोती हूँ
बैठ तेरी मैं दीवानी
कब जागेगा
तेरे अन्दर का वो प्यार
मर क्यूँ गई?
तेरी मोहब्बत की बसंत बहार
हे!परदेशी
घर वापस अब आजा
बाँहों में हमें ले
मुझे गले अब लगा जा ।
संपर्क सूत्र
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088
