साहित्यिक समाचार
काशी काव्य गंगा मंच की गोष्ठी धूमधाम से मनाई गई।
काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच पंजीकृत की 179 वीं गोष्ठी शनिवार को मेरे कार्यालय श्री…
एक अध्यापक कक्षा में बच्चों को पढ़ाते हुए बोले- "बच्चों मैं आपको गधे की कहानी सुनाऊँगा" तभी उछलकर बच्चे ने कहा - " अध्यापक ज…
Read more »धरती हरी लहरा रही घास मन भावन | संकट बढ़ा उदास हुए लोग जान जोखिम | अशोक बाबू माहौर
Read more »छोटे से घौंसले में चुंगा रही दाना अपने नन्हें बच्चों को चिड़िया साँवली | वह खुश थी परिवार भी अफसोस इतना था कहीं बारिश की बूंदें न कर दे घर को सराबोर …
Read more »मद्यपान पतन का कारण है जीवन नरक बन जाता है। तन धन की वर्बादी होती है परिवार तबाह हो जाता है । नशा कोई हो बुरा होता है आदत जिसको लग जाती है। नशा किय…
Read more »जीवन ये अनमोल है जो रिश्तों की ड़ोर है जीवन वह कर्म है जो जीवन का सार है | विश्वास ही रिश्ता है उसमें सारा जहाँ है, विश्वास जहाँ टूटा टूटी रिश्तों…
Read more »पुरानी बात उतरती मन में झकोरे तन | लालच बला फिर भी भाती मन दुखता तन | अशोक बाबू माहौर
Read more »चाय, कवि और कविता बन जाती है चाय पर कविता बड़ा अच्छा लगता है जब बुलाते हैं आप किसी कवि को करते हैं दिलचस्प बातें आज की कल की जीवन की, सच कहूँ ऐसा लग…
Read more »नया मकान नया नया शहर मुश्किल भारी | तनाव कम मुश्किल कहाँ कहाँ कैसे कह दूँ | गलियाँ भरीं तीज ना था त्योहार अजीब भीड़ | अशोक बाबू म…
Read more »अनन्तराम जी अनन्तराम जी। कविता लिखना है काम जी। अनन्तराम जी,अनन्तराम जी।। सुबह को कविता ,रात को कविता दिन में कविता,कविता शाम जी। अनन्तराम जी,,अनन्तर…
Read more »कभी जो थे मासूम से सूने-सूने बादल | अब दिखा रहे तरह-तरह के रंग बादल || झमा-झम-झम झड़ी लगा रहे | तड़ा-तड़-तड़ बिजली चमका रहे || कभी छोटीं तो …
Read more »घर कंगाल भूखा पेट रुलाय दाल ना आटा | बारिश तेज भिगो दिया शहर बुरे हालात | अशोक बाबू माहौर
Read more »आपने कितने टुकड़े कर दिए घास के मुझे अच्छा नहीं लगा मैं रुठ गया हूँ अपनो से पता नहीं क्यों? शायद ये घास मुझे प्रिय है ठीक वैसे ही जैसे म…
Read more »रानी कैकयी को वचन याद आया, दशरथ राजा को जरा भी न भाया, कैकयी ने कर दिया सत्यानाश, माँगा राम को 14 वर्ष का वन वास आर्य सुमन ने अपना रथ जोड…
Read more »अभी वक्त है कुछ पढ़ लूँ गढ़ लूँ आसमां छू लूँ बना लूँ एक नया आशियाना क्योंकि मैं इंसान हूँ? तुम्हारी तरह फर्क इतना तुम सपने मार देते हो मैं…
Read more »बस थोडे़ से दिन और ही सही घर रहेंगे खाना बनाना सीख जायेंगे झाडू पौछा भी आप यूँहीं बैठे मेरे काम देखते रहना उत्साह बढाते रहना क्योंकि हम अब …
Read more »वह मेरे पसीने में भीगे कपड़ों को देखकर ऐसे नाक भों सिकोड़ रहा था जैसे कि मैं किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हूँ, शायद उसे मेरे पसीने की दुर्गंध आ रही…
Read more »दंगों से दहशत में दिल्ली और सियासत जारी है। क्यों करते हैं ऐसा वे, जो मानवता पर भारी है। लथपथ हैं क्यों खून से गलियां, कोई नहीं बताए…
Read more »बस थोडे़ से दिन और ही सही घर रहेंगे खाना बनाना सीख जायेंगे झाडू पौछा भी आप यूँहीं बैठे मेरे काम देखते रहना उत्साह बढाते रहना क्योंकि हम अब …
Read more »मैं कौन हूँ? कहाँ से आया? कहाँ हूँ? भूल गया हूँ अपने आप को कोई तो बताए खड़ा हूँ यहाँ निर्बल सा ठगा सा अनजाने शहर में ठीक वैसे जैसे पत्…
Read more »संकट की घड़ी है देश में और हम क्या कर रहे? घूम रहे इधर उधर सड़क पर गलियों में नहीं कर रहे पालन नियमों का, हम भूल गए क्या नियम अपने ही और …
Read more »हे! कोरोना तू कितना कटु है नहीं देखता घर परिवार बूढ़े माँ बाप बाल बच्चे जवान अमीर गरीब सबको बनाने लगता है अपना शिकार! आओ हम सब मिलकर इसको …
Read more »हे! कोरोना तुझे हराना है दूर भगाना है सम्पूर्ण मानव जाति देश बचाना है! लो करता हूँ खुद को कैद घर में सुरक्षित बस तेरा ही अंत तुझे समझाना …
Read more »तमाम चीजें खचाखच दुकान बिके सामान । भरा बाजार भीड़ सा आलम है जैसे त्यौहार । अशोक बाबू माहौर
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